लक्ष्मी नारायण कथा
समुद्र मंथन से
निकली दिव्य
प्रेम कथा
यह कथा बताती है
कि धन और धर्म
का मिलन ही
जीवन को
सफल बनाता है।
समुद्र मंथन आरंभ
देव और असुर अमृत
पाने के लिए
क्षीरसागर का
मंथन करते हैं।
लक्ष्मी प्रकट
कमल पर
विराजमान
हुईं दिव्य
लक्ष्मी माता
सभी का आकर्षण
देव और असुर – हर कोई लक्ष्मी को पाना चाहता था।
लक्ष्मी का निर्णय
लक्ष्मी बोलीं – मैं वही चुनूँगी जो धर्म और मर्यादा का रक्षक हो।
नारायण का वरण
लक्ष्मी ने भगवान नारायण को अपना वर चुना
दिव्य संगम
तभी से लक्ष्मी नारायण
एक-दूसरे के
अविनाशी सहचर हैं।
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ज्योतिष रहस्य
ज्योतिष में – लक्ष्मी = शुक्र, नारायण = गुरु।
दोनों का संतुलन जीवन को पूर्ण बनाता है।
शिक्षा
जहाँ धर्म है,
वहीं स्थायी लक्ष्मी है
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